बाड़मेर चुनावी चर्चा की सुर्खियाँ
बाड़मेर में यही हुआ है। बढ़ती उम्र के मद्देनजर चुनाव नहीं लड़ने के लिए कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को पत्र लिखने वाले पूर्व मंत्री हेमाराम चौधरी ने जैसे ही अपनी तस्वीर और दो पंक्तियां सोशल मीडिया पर डाली, वैसे ही सामने वाले खेमे में खलबली मच गई। हालांकि खलबली हेमारामजी की पार्टी वाले खेमे में भी मची ही है लेकिन सामने वाले खेमे से थोड़ी कम ही। इन दो पंक्तियों के साथ ही हेमाराम चौधरी कांग्रेस के टिकट के सबसे बड़े और प्रबल दावेदार हो गए हैं। उनके विधानसभा चुनाव लड़ने से इनकार के बाद उनकी सीट पर भाजपा छोड़कर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े कर्नल सोनाराम चौधरी भी दावेदार हैं और छात्र राजनीति के रास्ते मुख्यधारा की राजनीति में आई एक युवा महिला नेत्री प्रभा चौधरी भी दावेदार हैं। नाम सुनीता चौधरी, और लक्ष्मण गोदारा के भी सामने आए हैं लेकिन इससे ज्यादा कंपीटिशन कांग्रेस में दिखता नहीं है। 2019 में प्रत्याशी रहे मानवेंद्र सिंह के लिए इलाके के लोग बता रहे हैं कि उनकी अभी चुनाव में उतरने में ज्यादा रुचि है नहीं। लेकिन जो अन्य दावेदार हैं, उनका दावा काफी कमजोर हो जाता है अगर हेमाराम चौधरी यहां से कांग्रेस के दावेदार होते हैं तो। यही सबसे बड़ा कारण भी है कि जयपुर से मंत्रियों, पार्टी पदाधिकारियों और मंत्री या पार्टी पदाधिकारी नहीं होने के अलावा भी बड़े नेताओं की आमद-रफ्त एकदम से बाड़मेर में बढ़ गई है। इतनी बढ़ गई है कि पिछले दो-चार दिन से स्थानीय कार्यकर्ता उनकी आवभगत में सांस लेने की फुर्सत भी नहीं निकाल पा रहे। हो सकता है यह संयोग भी हो लेकिन खाली संयोग ही नहीं हो सकता।
अब बात करें भाजपा की।
पक्की जीत मानकर चल रही पार्टी के टिकट के दावेदार उतने ही हैं, जितने विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री की कुर्सी के थे। यह अलग बात है कि जितने भी मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे, उनमें से कोई भी नहीं बना। भगवान करे, लोकसभा की टिकट में ऐसा नहीं हो क्योंकि दावेदारी कर रहे नेता या नेता बनने के इच्छुक महानुभाव तैयारी में ही काफी पैसा बहा चुके हैं। दावेदारी में पहले नंबर पर यहां अभी भी मौजूदा सांसद कैलाश चौधरी ही बने हुए हैं। बहुत ज्यादा नकारात्मकता भी नहीं है और विधानसभा चुनाव में परफॉर्मेंस भी ठीक-ठाक रही है (लोकसभा क्षेत्र की आठ में से पांच सीट) भाजपा ने जीती है। हवा में एक बात लगातार तैर रही है कि बीजेपी अपने दो बार सांसद रह चुके बहुत से नेताओं के टिकट काट सकती है लेकिन कैलाश चौधरी एक ही बार सांसद रहे हैं। फिर किशोरसिंह कानोड़ हैं जिनकी सोशल मीडिया पर रील्स नहीं आतीं लेकिन ऑफलाइन दावेदारी अच्छी जताई जा रही है। उनकी दावेदारी के पीछे तर्क है बीजेपी की 2014 से पहले यह बीजेपी की राजपूत सीट रही है। इसी तर्क के साथ शिव विधानसभा क्षेत्र से हाल ही चुनाव हारे भाजपा स्वरूपसिंह खारा भी दावेदारों की अग्रिम पंक्ति में खड़े हैं। उनके पिछले दिनों में इनोवेटिव कार्यक्रम और रील्स काफी चर्चा में रहे हैं। शेखावाटी क्षेत्र से आकर सीमावर्ती क्षेत्र में पिछले तीन दशकों से संघ के लिए काम कर रहे भागीरथ चौधरी भी यहां से जोरदार दावेदारी कर रहे हैं। तमिलनाडु के डीजीपी पद से रिटायर होकर अपने गृहक्षेत्र से लोकसभा में पहुंचने की हसरत लिए सांगाराम जांगिड़ की रील्स सबसे उम्दा और क्रिएटिव आ रही हैं। इस उम्र में वे खेजड़ी के दरख्तों पर चढ़कर लूंग भी सूंत लेते हैं। और बेशक, बाड़मेर के लोगों में उनके प्रति सम्मान भी है। उनकी उम्मीद बीजेपी की ओबीसी के प्रति इन दिनों दिखाई जा रही दरियादिली पर ज्यादा टिकी है। चिकित्सा के क्षेत्र से जाने-माने चिकित्सक डॉ.गिरधरसिंह भाटी के अलावा बहादुरसिंह बामरला और गणपत बांठिया भी हैं। लेकिन भाजपा के टिकट के दो अदृश्य दावेदार और भी हैं। एक बाड़मेर सीट से हारे आईआईटी-आईआईएम पासआउट दीपक कड़वासरा हैं तो दूसरे मानवेंद्रसिंह जसोल। बताया जा रहा है कि मानवेंद्र की भाजपा नेतृत्व से बातचीत हो चुकी थी और उनको चित्रासिंह में ज्यादा संभावना दिख रही थी। दुर्भाग्य से एक हादसे में चित्रासिंह का निधन हो गया। मानवेंद्र सिंह भी अभी हादसे से पूरी तरह उबरे नहीं हैं। लेकिन सहानुभूति की लहर पर सवार होकर मानवेंद्र आते हैं तो वे सब पर भारी पड़ सकते हैं। बाड़मेर आने वाले हर भाजपा नेता के सामने ज्यादातर नेता शक्ति प्रदर्शन में पैसा और शक्ति नष्ट कर रहे हैं, जिसका उद्देश्य तो है लेकिन अर्थ कुछ भी नहीं है। 2014 के बाद यहां निर्दलीयों और अन्यों पर भी काफी नजर रहेगी जो समीकरण बनाने-बिगाड़ने की इच्छा से आएंगे